दलित मुस्लिम भाई भाई बोल कर ऐसे ऐसे तबाह की गई बस्ती ।

 बिहार के पूर्णिया जिले के मझुवा गांव में 29 मई की रात महादलितों पर हमला देश को झकझोरने वाला साबित होना चाहिए। था। हिंदू समाज के जिस वर्ग को दलितों से भी अधिक पिछड़ा और वंचित मान कर महादलित का दर्जा दिया गया, उन पर मुस्लिम समुदाय को भीड़ ने हमला किया। इस हमले में 50 से ज्यादा घर जला दिए गए और एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया हमेशा की तरह इस हमले के पीछे भी जमीन जायदाद का मामला बताया गया। कुछ नेताओं का घटनास्थल पर जाना हुआ और बस दलितों का दर्द भी अब सेक्युलर पाखंड और निर्मम संवेदनहीनता का शिकार हो गया है। यदि यही घटना किसी गैर हिंदू गांव में घटी होती तो हम देखते कि दलित नेताओं की भीड़ वहाँ उमड़ती। सभी विपक्षी नेता वहां मातमपुर्सी के लिए एकत्र होते, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मार्मिक शब्दों में रिपोर्टिंग करने वाले वहीं घंटा गाड़ कर रनिंग कमेंट्री कर रहे होते। सभी एक स्वर में नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग कर रहे होते सो अलग, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं हुआ।


मैंने पहले भी कहा है कि हिंदुस्तान में हिंदू के नाते की संख्या भी जोड़ो जाए तो स्थिति को भयावहता जीवन यापन करना आज भी बहुधा त्रासदी भरा होता और उजागर होती है। हालांकि दलित-मुस्लिम एकता है। कश्मीर से केरल और इस्लामिस्ट-माओवादी के ढोल पीटने वाले तथा भीम-मीम का खोखला नारा कम्युनिस्ट आतंकियों के प्रभाव वाले इलाकों में लगाने वाले दलित-घामपंची इस्लामी नेताओं की रह रहे हिंदुओं से यह बात पूछी जा सकती है। यदि कोई कमी नहीं, लेकिन मझुवा कांड पर सब मौन है।


महादलित मुस्लिम होते और उन पर अत्याचार हुए है। इससे पहले भी इस्लामिक तत्थों द्वारा दलितों पर पुरानी नहीं है। सच तो यह है कि ऐसी घटनाएं रह हिंदुओं की कमजोरियों, उनकी सामाजिक होते तो क्या ऐसा ही सन्नाटा पसरा रहता ? मझ्या विखंडन को स्थिति का लाभ उठाते हुए स्वतंत्रता से गांव बायसी तहसील के तहत आता है। यहाँ से पहले से ही दलितों को इस्लामी ताकतों से जोड़ कर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के विधायक है और 75 हिंदुओं को और अधिक तोड़ने एवं कमजोर करने के प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। आसपास बांग्लादेश और सुनियोजित प्रयास चल रहे हैं। सभी इससे तो अवगत म्यांमार से आए लोगों का एक बड़ा हिस्सा जमीनों पर है कि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के दलित कब्जे कर रहा है और पोंदियों से बसे हिंदुओं को नेता जोगेंद्रनाथ मंडल को मुस्लिम लीग में पहले जोर जबरदस्ती से उन इलाकों से निकाला जा रहा किस तरह महत्व दिया गया और यहां तक पाकिस्तान । प्रथम कानून एवं श्रम मंत्री बनाया गया, लेकिन हमले, उनकी स्त्रियों के अपमान और घरों । आग बहुत कम लोग जानते हैं कि जिन्ना के मरते ही उन्हें लगाने की अनेक घटनाएं हो चुकी है। दिल्ली में हाशिये पर धकेल दिया गया। हताश-निगरा मंडल सराय काले खान में एक दलित द्वारा मुस्लिम युवती भारत आ गए और दलितों के प्रति इस्लामी राजनीति से विधाह पर दलित बस्ती पर हमले की घटना बहुत का कच्चा चिट्ठा खोला। इसके बावजूद देश में दलित-मुस्लिम एका का स्वांग जारी रहा। आजादी के रहकर सामने आती ही रहती है, जिनमें पीड़ित दलित बाद कुख्यात तस्कर हाजी मस्तान को अध्यक्षता में होते हैं और हमलावर मुस्लिम यदि ऐसी घटनाओं में अखिल भारतीय दलित मुस्लिम महासंघ की स्थापना बंगाल में राजनीतिक हिंसा में मारे गए दलित हिंदुओं हुई, जिसमें में फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार भी शामिल हुए। ओवैसी की मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन में दलितों के लिए विशेष अभियान सुविचारित ढंग से चलता आ रहा है। अनेक दलित नेता हिंदू तोड़ो- दलित जोड़ो के कुटिल षड़यंत्र के अंतर्गत हिंदू आस्था पर आधात करके अपनी कथित दलित आग्नेयता का आत्मघाती प्रदर्शन करते हैं। वस्तुतः यही वह वर्ग है जो मुस्लिमों द्वारा दलितों पर हमलों को दबाता है, उन पर चुप्पी साधे रहता है और कभी भी न तो घटनास्थल का दौरा करता है और न • ही कार्रवाई की मांग करता है। यह तथ्य है कि मझुवा गांव की घटना पर दलित नेताओं ने मौन साधना ही बेहतर समझा।


इस्लामी पाकिस्तान और हिंदुओं के प्रति कुटिल मानसिकता देखकर ही डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इस्लामिक संगठनों के तमाम प्रलोभन ठुकरा कर मुस्लिम होने के बजाय बौद्ध मत अपनाना स्वीकार किया। दुर्भाग्य से जातिगत सोच और संकीर्ण राजनीति के कारण हिंदू समाज भी इस भयानक खतरे के प्रति सजग नहीं हुआ है। आज भी दलितों पर हमलों के समय हिंदू-संत महात्मा चुप्पी साध बैठते हैं। उनके बड़े मंदिरों के न्यास विभिन्न कारणों से सरकारी कोष में करोड़ों रुपये का सहयोग करते हैं, लेकिन दलितों की सहायता के लिए उनमें कोई उत्साह नहीं दिखता। दलितों पर जातिगत वैमनस्य के कारण भेदभाव, आक्रमण कम नहीं हुए हैं। पूर्णिया में केवल विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता बेघर हुए दलितों की सहायता के लिए पहुंचे, लेकिन क्या इतना ही पर्याप्त था? दलित सिर्फ ऑकड़ा भर बना दिए जाएं। उनकी सहायता केवल तब की जाए, जब हिंदू समाज टूटने का खतरा हो तो यह दिखावा और दुखद होगा। दलित समाज हिंदुओं की रक्षक भुजा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी गोलवलकर ने 'तू मैं एक रक्त का संदेश क्यों दिया? क्योंकि उनका मानना था कि हिंदुओं में जातिगत विद्वेष और भेदभाव राष्ट्र को तोड़ने वाला सिद्ध होगा। हम एक रक्त, एक समाज, एक धर्मीय, एक हिंदू जाति वाले हैं। इसके अलावा कुछ नहीं। यदि आज भी हम नहीं चेते और दलितों को अपने घर में अपने रक्त बंधु का स्नेह और समानता नहीं दी तो फिर ईश्वर भी नहीं हालात नहीं सु धार पाएगा।

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