भारत में कोरोना की तिसरी लहर से बच्चो को है ज्यादा खतरा : बच्चो को कोरोना से ऐसे बचाएं ओर इम्यूनिटी सिस्टम को भी बढ़ाए ।
कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका में बच्चों के प्रभावित होने की बात कही जा रही है। ऐसे जरूरी है कि अभिभावक रहें सजग और बच्चों खानपान व व्यायाम का रखा जाए खास खयाल ...
संक्रमण का प्रभाव लक्षण समय के साथ नए-नए रूप में दिख रहे हैं। पहली लहर से चार गुना ज्यादा मरीज और मौतें दूसरी लहर में हुई। देश में चल रहे के टीकाकरण को देखते हुए तीसरी लहर में अपेक्षाकृत कम सुरक्षित 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ज्यादा खतरे में बताया जा रहा है। हालांकि यह पूर्ण सत्य नहीं है। दो लहरों के आंकड़ों को आधार मानें तो हर वयस्क पर 10 बच्चों के संक्रमित होने की आशंका है। लहर में जितनी बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होंगे, उसके 10 फीसद बच्चे ही कोरोना की चपेट में आएंगे।
चार से छह हफ्ते उभर सकते हैं लक्षण, एहतियात जरूरी: बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए जरूरी कि अभिभावक खुद को कोरोना से बचाएं। बच्चों को उन्हीं से संक्रमण होता है। यदि घर किसी को संक्रमण हो जाए तो सख्ती से आइसोलेशन के नियमों का पालन करें। फिर भी बच्चे चपेट में आ जाएं तो घबराएं नहीं 90 फीसद तक बच्चों में गंभीर लक्षण होते, वे दो से तीन दिन ठीक हो जाते हैं। 10 फीसद ऐसे बच्चे होते जिनमें संक्रमण के दो से छह हफ्ते बाद मल्टी सिस्टम सिंड्रोम (एमआइएस-सी) के लक्षण उभर सकते हैं। इस बीच उनकी आरटीपीसीआर व एंटीजन रैपिड टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी होती है। ऐसे में बच्चे को कोरोना हो या घर के किसी सदस्य को उनके लक्षणों पर छह हफ्ते तक नजर रखी जानी चाहिए।
घबराएं नहीं, नवजात व शिशुओं को नहीं अधिक खतरा: कोरोना की तीसरी लहर को लोग इसलिए परेशान नवजात या शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता होती साथ ही सांस समेत अन्य परेशानियों को बता नहीं सकते।
पहली लहर कुल संक्रमितों में बच्चों की संख्या पांच से छह फीसद तो दूसरी लहर 10 से 12 फीसद है। तीसरी लहर में भी ऐसी ही आशंका है। वहीं नवजात व शिशु कोरोना से आसानी से स्वस्थ हो रहे हैं। पटना एम्स में कोरोना संक्रमित मां से जन्म लेने वाले 48 बच्चों में से दो ही संक्रमित हुए थे, जो बाहर से भी आए, उनमें से एक की मौत हुई, क्योंकि उसे लाने में देर होने से एमआइएस सी के कारण कई अंग काम करना बंद कर चुके थे।
इम्यून दें पौष्टिक सप्लीमेंट इम्यून बूस्टर हैं, ये केवल भ्रम है। बिना डॉक्टर की सलाह के अपनी मर्जी से अधिक मात्रा में इन्हें लेने से नुकसान भी हो सकता है। ऐसे में डॉक्टरों परामर्श पर निर्धारित डोज में ही इन्हें लेना उचित होगा। बच्चों को कोरोना से बचाना है तो पांच वर्ष तक के बच्चों को दिन में कम से कम छह बार खाने को दें। वहीं इससे बड़े बच्चों को चार से पांच बार
यदि बच्चा बिना किसी दबाव के पूरी प्लेट साफ कर दे तो उसे और खाना दें। जब बच्चा प्लेट में थोड़ा छोड़ तभी माने कि साल में पांच वर्ष से अधिक उम्र का हर बच्चा अब कोरोना नाम से वाकिफ है। ऐसे में उन्हें कोरोंना को हराने की जंग में भागीदार बनाएं। उन्हें इसकी गंभीरता के साथ बचाव, की जानकारी दें ताकि वे न केवल अपनी सुरक्षा कर सकें, बल्कि दूसरों को भी संक्रमण से बचाने में सहायक बन सकें।
उसका पेट भर गया है। खाने में आवश्यक रूप से प्रोटीन यानी दाल, कार्बोहाइड्रेट यानी चावल-रोटी, घी व दूध-दही के अलावा हरी सब्जियां व फल जरूर शामिल करें। खाने में तरल पदार्थ की मात्रा बढ़ाने के साथ मौसमी फलों व सब्जियों की मात्रा अधिक रखें। छह माह के ऊपर के बच्चे जो पोषक आहार ले रहे हैं, उन्हें दाल तथा सब्जियों का सूप, खट्टे फल, अनार, तरबूज आदि का जूस पिलाएं। कोरोना की गंभीरता बताएं ताकि वे न बनें सामुदायिक संक्रमण का कारण बच्चे सामुदायिक संक्रमण, का बड़ा कारण बन बच्चों को संक्रमण से बचाने को सकते हैं। विगत डेढ़ अभिभावक रखें
• बच्चों को बताएं कि वे कौन से काम करें या नहीं करें, जिससे खुद को और पूरे परिवार को सुरक्षित रख सकें।
• अनजान सतह को छूने के बाद हाथ धोना, खांसते या छींकते वक़्त रूमाल रखना जैसे हाइजीन के सामान्य नियमों की आदत डालने के लिए प्रोत्साहित करें।
ध्यान • बच्चों को घर पर ही रहने के लिए प्रेरित करें।
• अत्यधिक जरूरी होने पर या कोई
• मानसिक स्वास्थ्य के लिए • आठ से दस घंटे की नींद, पांच वर्ष
से अधिक उम्र के बच्चों को नियमित योगाभ्यास, प्राणायाम कराने के साथ गुब्बारे फुलाने को दें।
• ओम अथवा धर्म के अनुसार इससे मिलते जुलते शब्द का उच्चारण यथासम्भव लंबे समय तक करने का अभ्यास कराएं।
• इंडोर गेम जैसे- लूडो, शतरंज, करम बोर्ड इत्यादि में स्वयं प्रतिभागी बनकर खेलने के लिए प्रेरित करें।
• उपलब्ध संसाधन एवं प्रशिक्षण के अनुरूप एरोबिक्स, डांस, स्किपिंग रोप, संगीत, वाद्ययंत्र के लिए प्रेरित करें।
• टीवी-मोबाइल का प्रयोग निर्धारित समय के लिए अपनी देखरेख में ही करने को दें।
• पेड़-पौधों अथवा पालतू जानवरों या पक्षियों का ख्याल रखने में बच्चों की मदद लें तथा घर के छोटे-मोटे कामों में बच्चों की सहभागिता का अवसर दें।
• इसी प्रकार से सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए संवाद अथवा उपलब्ध विकल्पों का चयन करें।
• शासन-प्रशासन करे ये तैयारियां
● मेडिकल कॉलेज व अन्य बड़े अस्पतालों में पिकू (पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट), निक (नियोनेटल इंटेसिव केयर) के अलावा वेटिलेटर आदि की अलग व्यवस्था की जानी चाहिए। • इसके अलावा घर के नजदीक तुरंत बुनियादी उपचार कर रोगियों को ऑक्सीजन आदि लगाकर रेफर करने का सिस्टम तैयार किया जाना चाहिए।
• पिकू निकू की संख्या बढ़ाने के साथ वेंटिलेटर पर कार्य करने के लिए शिशु रोग विशेषज्ञों • तीसरी लहर में दूसरी की तरह जरूरी दवाओं व ऑक्सीजन आदि का संकट नहीं हो, इसकी
को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
उपलब्धता सुनिश्चित कर लेनी चाहिए।
अन्य विकल्प न हो तो ही घर से बाहर निकालें।
• घर से बाहर निकलते समय संक्रमण से बचाव के तरीके अपनाएं।
• मुंह को मास्क से अच्छी प्रकार से ढककर ही बाहर निकलें।
• यथासंभव पब्लिक परिवहन के प्रयोग से बचें।
•• भीड़भाड़ वाली जगहों जैसे बाजार, रेलवे स्टेशन, अस्पताल इत्यादि पर बच्चों को न ले जाएं।
• बार-बार मुंह तथा नाक में अंगुलियां डालने से रोकें।
'• नाखूनों को छोटा रखें, हाथ को साफ करवाएं तथा प्रतिदिन स्नान करवाएं।
• थोड़े समझदार बच्चों को अपनी देखरेख में गरारा कराने के साथ भाप लेने को प्रेरित करें।
क्या है एमआइएस-सी: मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआइएस-सी) में शरीर के विभिन्न हिस्सों जैसे हृदय, फेफड़े, गुर्दे, मस्तिष्क, त्वचा, आंख या आंत में सूजन हो सकती है। यदि तीन या अधिक दिन से बुखार हो, त्वचा में चकत्ते, कंजेक्टवाइटिस, हाथ-पांव ठंडा होना यानी शॉक सिंड्रोम, कॉर्डियक इंवाल्वमेंट मार्कर पॉजिटिव हो या बीपी लो, उल्टी-दस्त, पेट दर्द व गंभीर निमोनिया, आंख-जीभ में लाली, हाथ-पैर में सूजन, थकान, सांस में तकलीफ, दिल की धड़कन तेज होना, होंठ या नाखून का नीला पड़ना में से कोई भी दो एक साथ हों तो यह एमआइएस-सी हो सकता है। सीआरपी और डि-डाइमर जैसी जांचों से इसकी जानकारी आसानी से हो सकती है। ऐसे रोगियों की कोरोना जांच रिपोर्ट निगेटिव रहती है।
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