आखिरकार कब सुलझेगी ये कोरोना की गुत्थी , आखिर कोन बना दुनिया भर में करोड़ों लोगो की जान लेने वाले हत्यारे की कहानी

 अमेरिका ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर दी जा रही प्रयोगशाला (लैब) से लीक होने की थ्योरी की जांच नए सिरे से शुरू कर दी है। वह यह आंकने का प्रयास कर रहा है कि क्या कोरोना वायरस चीन की वुहान वायरस लैब से निकला ? कोरोना वायरस कहां से निकला, इस पर बहस जनवरी 2020 में ही छिड़ गई थी, जब चीन ने पहले इन्कार किया और फिर कुंबूल किया कि यह एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है। हालांकि चीन सरकार इस पर अड़ी है कि कोरोना वायरस जंगल से निकला है, लेकिन कई जानवरों पर संदेह जताने के बाद भी न तो चीन और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) यह बता सका है कि यह वायरस आखिर किस प्रजाति से होता हुआ इंसानों तक पहुंचा ? पहले कहा गया कि यह पैंगोलिन से निकला, फिर चमगादड़ और कई दूसरे जानवरों के नाम लिए गए। सच तो यह है कि महामारी के 16-17 महीने बाद


भी हम दावे से नहीं कह सकते कि किन प्रजातियों के माध्यम से यह वायरस इंसानों तक फैला? इससे पहले हमने इंसानों को बीमार करने वाले दो अन्य कोरोना वायरस देखे। सार्स-1 (2002) और मर्स (2012), जिनकी प्रजातियों का पता वैज्ञानिकों ने चार और नौ महीने में लगा लिया था।


मौजूदा कोरोना वायरस को लेकर सबसे पहले संदेह गया चीन के बुहान शहर की लैच इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी पर। वहान शहर से ही इस वायरस की शुरुआत दिसंबर 2019 में हुई। यह लैब कोई आम संस्थान नहीं है। यहां वायरस पर सबसे खतरनाक और जटिल प्रयोग होते हैं। खासतौर पर ऐसे वायरस पर, जो चमगादड़ों में पैदा होते हैं। इस प्रयोगशाला की कमान बैट वायरसों पर विशेषज्ञता रखने वाली शी झेंग-लो संभाल रही है, जिन्हें चीन में बैट लेडी भी कहा जाता है। अब तक इस लैब ने दक्षिण चीन की गुफाओं से चमगादड़ों से लगभग सौ किस्म के वायरस इकट्ठा किए हैं, जिनमें आर एटी जी 13 भी शामिल है, जिसे 2013 में चमगादड़ों से आइसोलेट किया गया था। यह वायरस कोरोना वायरस से 96.2 प्रतिशत तक हू-ब-हू मिलता है। वायरस पर अध्ययन के लिए चमगादड़ दी कारणों से काफी महत्वपूर्ण स्तनपायी है। पहला, वे उड़ सकते हैं और कम समय में लंबी दूरी तय कर सकते हैं। दूसरा, स्तनधारियों में उनकी संख्या सबसे अधिक है। धरती पर समस्त स्तनधारियों में एक चौथाई संख्या चमगादड़ों की है और यहीं से अमेरिका स्थित संस्थानों की भूमिका


शुरू हो जाती है। 2015 में चुहान लैब ने अमेरिका की नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के साथ साझेदारी कर यह पता लगाने का प्रयास किया कि कैसे जो वायरस चमगादड़ों में पाए जाते हैं, वे इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं। इसी साझेदारी में वुहान लैब ने चमगादड़ों में मिले वायरस में बदलाव कर चूहों को संक्रमित करने के विषय में जाना। इसके अतिरिक्त यह भी पता किया कि कैसे उस वायरस में चूहों की सांस की नली में मौजूद एस-2 प्रोटीन पर हमला करने की क्षमता पैदा की जाए। चिंता की बात यह है कि एस-2 प्रोटीन इंसानों में भी पाया जाता है। कोरोना वायरस इंसानों की कोशिकाओं में खुद को इसी एस-2 प्रोटीन के साथ जोड़कर हमारे श्वसन मार्ग में प्रवेश कर जाता है।


अब बात इस विषय पर आती है कि इसमें अमेरिकी सरकार की भूमिका क्या थी, जिसकी जांच अब अमेरिकी सीनेट कर रही है। वुहान लैब को अमेरिका के संक्रामक रोगों के राष्ट्रीय संस्थान से धन मुहैया कराया जा रहा था। इस सरकारी संगठन ने न्यूयॉर्क के एक एनजीओ को पैसे दिए, जिसने वुहान लैब को आगे का काम सौंपा। 2018 और 2019 में इसका अध्ययन करना था कि चमगादड़ों से विभिन्न प्रकार के वायरस दूसरी प्रजातियों में कैसे फैल सकत हैं? अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या वुहान शहर में पैदा हुआ 2019 का कोरोन वायरस इसी प्रयोग का नतीजा था? चीन इससे इन्कार करता है, लेकिन कोई सुबूत नहीं देता। इस जांच की आखिरी महत्वपूर्ण कड़ी एक खास प्रयोग है, जिसे गेन ऑफ फंक्शन कहा जाता है। इस बेहद खतरनाक प्रयोग में वैज्ञानिक एक ऐसे चमगादड़ (या दूसरे जानवर) से वायरस को लेते हैं, जो इंसानों को प्रभावित नहीं करता। फिर वे उसे एक लैब में तेजी से तब तक रूपांतरित (म्यूटेंट) करते हैं जब तक कि वह इंसानों की कोशिकाओं को प्रभावित करना सीख नहीं लेता। यह अध्ययन किसी हानिरहित वायरस के भविष्य को जानने और अनुमान लगाने के लिए किया जाता है कि आगे चलकर कहीं यह इंसानों में बीमारी तो पैदा नहीं करेगा। निश्चित रूप से हम इस गेन ऑफ फंक्शन प्रयोग के खतरों को समझ सकते हैं। अगर इस प्रक्रिया में लैब में सुपर वायरस बन जाए और वह सुपर वायरस लीक हो जाए तो क्या होगा? बुहान लैब चमगादड़ के वायरस पर ऐसे प्रयोग के लिए ही जानी जाती है।


आज जब दुनिया कोरोना संक्रमण की उत्पत्ति को लेकर प्रश्न कर रही है तो चीन की सरकार ने चुप्पी साध ली है। इन मामलों में चीन का अपना पुराना रिकॉर्ड भी दागदार है। 2015 का एक दस्तावेज हाल में सामने आया है, जिसके अनुसार तब चीन के शीर्ष वैज्ञानिक चर्चा कर रहे थे कि वायरस के प्रयोग से कम कीमत पर हथियार कैसे बनाए जा सकते हैं? चीन अपनी लैब में सुरक्षा के खराब मानकों के लिए भी बदनाम है। पहले भी कई बार चीन में वायरस लीक हुए हैं, जिनमें 2004 का सार्स वायरस भी शामिल है।


जाहिर है इस बारे में दुनिया की सारी शंकाओं को दूर कर लेना बहुत आवश्यक है कि जिस कोरोना वायरस ने अब तक 35 लाख इंसानों को मार डाला, आखिर उसकी शुरुआत कहां से हुई? यह सवाल जरूरी है, न केवल अतीत के नजरिये से, बल्कि भविष्य के लिहाज से भी, ताकि फिर कभी ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। यदि इस वायरस की उत्पत्ति का पता चल जाए तो हम जल्द और बेहतर इलाज पाने के साथ ही भविष्य के म्यूटेशन का अनुमान भी लगा सकते हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि गलती से या फिर जानबूझकर कोई भी ऐसे वायरस को मानवता के विरुद्ध हथियार न बना सके।

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