जल्द ही होगा इन 23 बैंकों का विलय । कब तक होगी ये सभी बैंकों का विलय पूरी बाते जाने ।


 प्रदेश के सभी 23 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) का बिहार स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में विलय की कवायद शुरू हो गई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों का स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के साथ विलय को लेकर जारी गाइडलाइन का सरकार अध्ययन कराने में जुट गई है। जल्द ही आरबीआई के निर्देशों के तहत जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों का स्टेट कॉपरेटिव बैंक के साथ विलय पर मुहर लगने की संभावना है।


सरकार के आला अफसरों का मानना है कि बैंकों का एक बैंक में तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए पूर्व को बालू नीति में आवश्यक प्रविधान किए जा रहे हैं।


विलय से प्रदेश में बैंकिंग सेवाओं में क्रांति आ सकती है और राष्ट्रीय बैंको की मनमानी पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है।


महज 11 शाखाओं के साथ संचालित बिहार स्टेट कोऑपरेटिव बैंक का सभी 38 जिलों में जिला व प्रखंड मुख्यालय से लेकर पंचायत स्तर तक विस्तार होगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तेजी से मजबूती प्रदान करने और रोजगार सृजन आमजनों व किसानों के घरों तक बैंकिंग सेवाओं की सीधे पहुंच होगी। साथ ही प्रदेश में कमजोर हो चुकी सहकारिता को सशक्त और प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी। 


● आरबीआई की गाइडलाइन का अध्ययन कराने में जुटी सरकार


● विलय से प्रदेश में बैंकिंग सेवाओं में क्रांति आने की संभावना

 

• प्रखंड व पंचायत स्तर पर बिहार स्टेट कोआपरेटिव बैंक का हो सकेगा विस्तार


जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों का स्टेट कोआपरेटिव बैंक के साथ विलय का में काफी हद तक मदद मिलेगी। फैसला सरकार के स्तर पर होगा। फिलहाल आरबीआई गाइडलाइन का स्टडी किया जा रहा है। इसके बाद सरकार के निर्देश पर विलय संबंधी मसौदा तैयार होगा और कैबिनेट की मजूरी से उसे अमलीजामा पहनाया जाएगा।


विलय का प्रस्ताव


आरबीआइ विलय प्रस्ताव पर तभी विचार होगा जब बैंक में जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त पूंजी डाले जाने को लेकर रणनीति, आवश्यकता पड़ने पर वित्तीय समर्थन का आश्वासन, मुनाफे को लेकर स्पष्ट व्यावसायिक रूपरेखा और बैंक के संचालन माडल का प्रस्ताव भी सरकार पेश देंगी।


प्रदेश में सहकारी बैंकों की मौजूदा स्थिति 


प्रदेश के 34 जिलों में कार्यरत 23 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की 296 शाखाएं हैं। शेष चार जिले छपरा, दरभंगा, मधेपुरा और सहरसा में बैंकों का अस्तित्व नहीं फीसद) है। बैंकों का कुल जमा

है। इनका एनपीए पांच फीसद बैंकों के पास अतिरिक्त उधार हेतु मानक से ज्यादा (औसत 24 ज्यादा संसाधन नहीं है। इतना ही नहीं, नौ बैंक आरबीआइ के मानक करीब 32 सौ करोड़ रुपये है, को भी पूरा नहीं कर रहे हैं। इनमें जबकि इनका कुल उधार 25 सौ औरंगाबाद, कटिहार, मधुबनी, करोड़ रुपये है। इन बैंकों का मुंगेर, जमुई, भागलपुर, मोतिहारी, साख और जमा अनुपात (सीडी नवादा और पाटलिपुत्र सहकारी रेशियो ) करीब 80 फीसद है। सीडी बैंक प्रमुख रूप से शामिल हैं। रेशियो ज्यादा होने के कारण इन पिछले साल सहकारिता विभाग की तत्कालीन निबंधक (सहकारी समितियां) रचना पाटिल ने नौ बैंकों की खस्ताहाल वित्तीय हालत की रिपोर्ट आरबीआइ व सरकार दी थी जिसमें बैंकों के बोर्ड को भी भंग करने की अनुशंसा थी। एक अधिकारी ने बताया कि सभी जिला • सहकारी बैंकों पर स्थानीय राजनीति हावी है, क्योंकि बैंकों के बोर्ड राजनेता ही सेलेक्टेड चेयरमैन होते हैं और उनके चहेते लोग बोर्ड सदस्य रहते हैं, जबकि सहकारिता सेवा के एक पदाधिकारी बोर्ड में सरकार की नुमाइदगी करते हैं।

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