आखिर हमारी सरकार कब तक जगेगी कब तक चलता रहेगा ये मौत का खेल : अब तो जाग जाओ सरकार

संपादकीय पृष्ठ पर एनके सिंह का विद्वता पूर्ण लेख 'अब तो प्राथमिकता में आए स्वास्थ्य' भारत के सदा से ही खोखली रही चिकित्सा व्यवस्था और इसके कारणों का विश्लेषण करता है। कड़वा सत्य है कि कोरोना महामारी ने तो आज मात्र इसे विश्व के सामने 'एक्सपोज' किया है, जबकि पहले इक्का-दुक्का हल्ले-गुल्ले को छोड़कर इस विषय को सदा दबाया ही जाता रहा है। क्योंकि नीति-निर्धारकों (राजनेताओं, नौकरशाहों) और धनवान लोगों को विशेषाधिकार के तहत उच्चतम स्वास्थ्य सेवाएं सहज उपलब्ध हो जाती हैं। इसलिए यदा-कदा बीमार होने पर भी वे भारतीय चिकित्सा व्यवस्था और चिकित्सकों का गुणगान करते हुए ही अस्पताल से बाहर आते हैं। काश इन्होंने कभी सरकारी अस्पतालों की लापरवाही, अव्यवस्था तथा भ्रष्टाचार और अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों की लूटने खसोटने की प्रवृत्ति को व्यक्तिगत रूप से झेला होता तो स्वास्थ्य कब का राज्य और देश की प्राथमिकताओं में शामिल हो चुका होता। देश की जर्जर चिकित्सा व्यवस्था का दुष्परिणाम गरीब और मध्यमवर्ग दशकों से झेल रहा है और न जाने कब तक झेलता रहेगा? आखिर यह बात समझ से परे है कि सार्वजनिक हित में सरकार एक प्रशिक्षित डॉक्टर को 10 साल की अनिवार्य सरकारी सेवा का आदेश क्यों नहीं दे सकती? इस अनिवार्य शर्त को पूरा न करने वाले डॉक्टरों को डॉक्टरी का लाइसेंस जारी ही न किया जाए। हां चिकित्सकों को आर्थिक नुकसान न हो इसलिए उन्हें उच्चतम स्तर के वेतन भत्ते देने में भी सरकार को हिचक नहीं होनी 
चाहिए। अस्पतालों में डॉक्टरों एवं अन्य स्टाफ को श्रेष्ठतम वातावरण कार्य के लिए मिले तो मरीज के साथ की गई किसी लापरवाही के लिए गंभीर त्वरित दंड का भी प्रविधान हो । 

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