अब हाथियों को रोकेगी मधुमक्खियों की आवाज : जाने कैसे करना है ये काम

 नेपाल के जंगलों से निकलकर सीमावर्ती इलाकों में उत्पात मचाने वाले हाथियों को रोकने के लिए अब मधुमक्खियों की आवाज का सहारा लिया जाएगा। इंडो-नेपाल बॉर्डर पर मधुमक्खी की भिनभिनाहट वाले उपकरण लगाए जाएंगे। प्रयोग के तौर पर वन विभाग द्वारा दिघलबैंक प्रखंड क्षेत्र में कुछ संवेदनशील स्थलों का चयन कर उपकरण लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।

पूर्व में नार्थ-ईस्ट के डुअर्स इलाके में नॉर्थ फ्रंटियर रेलवे द्वारा इसका प्रयोग किया गया था। फिलहाल 20 उपकरण लगाने के लिए प्रस्ताव तैयार कर मुख्यालय को भेजा गया है। प्रयोग सफल होने पर इसका विस्तार किया जाएगा। मक्के की फसल के समय में जनवरी से लेकर मई-जून तक किशनगंज समेत कोसी-सीमांचल के जिलों में हाथियों का उत्पात जारी रहता है। नेपाल के जंगली हाथियों का झुंड किशनगंज से लेकर अररिया, कटिहार व

सुपौल तक उत्पात मचाता है। इस साल सिर्फ किशनगंज जिले में दो दर्जन से अधिक बार प्रवेश कर दर्जनों कच्चे मकान और सैंकड़ों एकड़ में लगी मक्के की फसल को हाथी नुकसान पहुंचा चुके हैं। पिछले वर्ष दिघलबैंक में हाथी ने एक किसान की जान भी ले ली थी। इस साल दिघलबैंक प्रखंड के धनतोला, बिहारी टीला, माल टोली,हाथीडुब्बा, डुब्बाटोली, मुलाबाड़ी, डोरिया, सूरीभिट्ठा, पांचगाछी, पिपला आदि गांवों में लगभग चार दर्जन से अधिक कच्चे घरों को हाथियों ने तोड़ डाला। मक्के की सैकड़ों एकड़ फसल भी बर्बाद कर दी ।

मालटोली के मु. हसीबुर्रहमान बताते हैं कि उनकी 32 डिसमिल जमीन में लगी मक्के की फसल हाथियों ने रौंद दी। हाथियों के लगातार गांवों में घुस आने से लोग डरे-सहमे रहते हैं। 27 अप्रैल को हाथियों के झुंड ने मु. रिजाबुल की 100 डिसिमिल व विजय गणेश की दो एकड़ मक्के की फसल बर्बाद कर दी थी। विजय गणेश बताते हैं कि किसानों ने वन विभाग से क्षतिपूर्ति की मांग की है। हाथियों का झुंड कई दिनों तक खेतों में डेरा डाले रहता है। 

हाथियों के उत्पात से ग्रामीणों के बचाने के लिए मधुमक्खियों की धुन वाले यंत्र लगाने के लिए प्रस्ताव मुख्यालय को भेजा गया है। संवेदनशील इलाकों में वनकर्मियों की तैनाती की गई है। ग्रामीणों के साथ मिलकर पारंपरिक तरीके से मशाल जलाकर व पटाखा के माध्यम से हाथियों को वापस नेपाल की ओर भगाने की कोशिश की जाती है। इस साल अब तक 41 घरों की क्षति का आंकलन किया गया है। फसल क्षति का भी आंकलन कराया जा रहा है। क्षतिपूर्ति के लिए मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा जाएगा। उमानाथ दुबे, क्षेत्रीय वन प्रसार पदाधिकारी, किशनगंज

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